एहसास पाएँ

रिश्ते निचोड़े, राहों को मोड़े

गाने कुछ गायें, एहसास पाएँ

खुद को झिंझोड़ें, कसमों को तोड़ें

फिर गुनगुनाएँ, एहसास पाएँ

 

        भूली सी यादों को, बचपन के वादों को,

        टूटे इरादों को, फिर से बनाएँ

        एहसास पाएँ

 

हँसते थे रोते थे, दिन भर हम सोते थे

पैसे हम खोते थे, फिर से गुमाएँ,

एहसास पाएँ

 

        जिस पे हम मरते थे, मिलने से डरते थे

        इश्क़ भी करते थे, गले लगाएँ

        एहसास पाएँ

 

– निहित कौल ‘गर्द’

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