पता है नाम मगर वो ‘हुज़ूर’ कहते हैं,
कि जो करीब हैं उसे वो दूर कहते हैं
झुकी नज़र से करें क़त्ल वो मगर फिर भी
उसी झुकी सी नज़र को शऊर कहते हैं
भले औलाद ने आँखों में धूल झौंकी हो,
मेरी आँखों का उसे फिर भी नूर कहते हैं
तुम्हारी उम्र में जो बोरीयत कहलाती है
हुमारी उम्र में आ कर सुरूर कहते हैं
तेरे बारे में गर्द वो भला कहें ना कहें
तेरे बारे में बुरा वो ज़रूर कहते हैं
– निहित कौल ‘गर्द’
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